हिंदी

परमात्मा कबीर जी ने कैसे धर्म दास को सरण में लिए

परमात्मा कबीर जी ने कैसे धर्म दास को सरण में लिए: (धर्मदास जी ने कहा) :- हे जिन्दा! आप यह क्या कह रहे हो कि श्री विष्णु जी तीनों लोको में केवल एक विभाग के मन्त्र हैं। आप गलत कह रहे हो। श्री विष्णुजी तो अखिल ब्रह्माण्ड के स्वामी हैं। ये ही श्री ब्रह्मा जी रुप में उत्पत्ति करते हैं। विष्णु रुप होकर संसार का पालन करते हैं तथा शिव रुप होकर संहार करते हैं। ये तो कुल के मालिक हैं, यदि फिर से आपने श्री विष्णु जी को अपमानित किया तो ठीक बात नहीं रहेगी। परमेश्वर कबीर जी ने कहा :-

मूर्ख के समझावतें, ज्ञान गाँठि का जाय। कोयला होत न उजला, भावें सौ मन साबुन लाय।।

इतना कहकर परमेश्वर जिन्दा रुपधारी अन्तर्ध्यान हो गए। दूसरी बार परमेश्वर को खोने के पश्चात् धर्मदास बहुत उदास हो गए। भगवान विष्णु में इतनी अटूट आस्था थी कि आँखों प्रमाण देखकर भी झूठ को त्यागने को तैयार नहीं थे।

कबीर, जान बूझ साची तजै, करे झूठ से नेह। ताकि संगति हे प्रभु, स्वपन में भी ना देह।।

परमात्मा कबीर जी ने कैसे धर्म दास को सरण में लिए

कुछ देर के पश्चात् धर्मदास की बुद्धि से काल का साया हटा और अपनी गलती पर विचार किया कि सब प्रमाण गीता से ही प्रत्यक्ष किए गए थे। जिन्दा बाबा ने अपनी ओर से तो कुछ नहीं कहा। मैं कितना अभागा हूँ कि मैंने अपने हठी व्यवहार से देव स्वरुप तत्त्वदर्शी सन्त को खो दिया।

अब तो वे देव नहीं मिलेंगे। मेरा जीवन व्यर्थ जाएगा। यह विचार करके धर्मदास सिहर उठा अर्थात् भय से काँपने लगा। खाना भी कम खाने लगा, उदास रहने लगा तथा मन-मन में अर्जी लगाने लगा हे देव! हे जिन्दा बाबा! एक बार दर्शन दे दो। भविष्य में ऐसी गलती कभी नहीं करुँगा। मैं आपसे करबद्ध प्रार्थना करता हूँ। मुझ मूर्ख की ओच्छी-मन्दी बातों पर ध्यान न दो। मुझे फिर मिलो

गुसांई। आपका ज्ञान सत्य, आप सत्य, आप जी का एक-एक वचन अमृत है। कृपया दर्शन दो नहीं तो अधिक दिन मेरा जीवन नहीं रहेगा।

तीसरे दिन परमेश्वर कबीर जी एक दरिया के किनारे वृक्ष के नीचे बैठे थे। आसपास कुछ आवारा गायें भी उसी वृक्ष के नीचे बैठी जुगाली कर रही थीं। कुछ दरिया के किनारे घास चर रही थी। धर्मदास की दृष्टि दरिया के किनारे पिताम्बर पहने बैठे सन्त पर पड़ी, देखा आस-पास गायें चर रही है। ऐसा लगा जैसे साक्षात् भगवान कृष्ण अपने लोक से आकर बैठे हां। धर्मदास उत्सुकता से सन्त के पास गया तथा देखा यह तो कोई सामान्य सन्त है। फिर भी सोचा चरण स्पर्श करके फिर आगे बढूँगा।

धर्मदास जी ने जब चरणों का स्पर्श किया, मस्तक चरणों पर रखा तो ऐसा लगा कि जैसे रुई को छुआ हो। फिर चरणों को हाथां से दबा-दबाकर देखा तो उनमें कहीं भी हड्डी नहीं थी। ऊपर चेहरे की ओर देखा तो वही बाबा जिन्दा उसी पहले वाली वेशभूषा में बैठा था।

धर्मदास जी ने चरणों को दृढ़ करके पकड़ लिया कि कहीं फिर से न चले जाऐं और अपनी गलती की क्षमा याचना की। कहा कि हे जिन्दा! आप तो तत्त्वदर्शी सन्त हो। मैं एक भ्रमित जिज्ञासु हूँ।

जब तक मेरी शंकाओं का समाधान नहीं होगा, तब तक मेरा अज्ञान नाश कैसे होगा? आप तो महाकृपालु हैं। मुझ किंकर पर दया करो। मेरा अज्ञान हटाओ प्रभु।

प्रश्न (धर्मदास जी का) :- हे जिन्दा! यदि श्री विष्णु जी पूर्ण परमात्मा नहीं है तो कौन है पूर्ण परमात्मा, कृप्या गीता से प्रमाण देना?

उत्तर :- वह परमात्मा ‘‘परम अक्षर ब्रह्म’’ है जो कुल का मालिक है।

प्रमाण :- श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 तथा 16-17 में है। गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 का सारांश व भावार्थ है कि ‘‘उल्टे लटके हुए वृक्ष के समान संसार को जानो। जैसे वृक्ष की जड़ें तो ऊपर हैं, नीचे तीनों गुण रुपी शाखाएं जानो। गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में यह भी स्पष्ट किया है कि तत्त्वदर्शी सन्त की क्या पहचान है? तत्त्वदर्शी सन्त वह है जो संसार रुपी वृक्ष के सर्वांग (सभी भाग) भिन्न-भिन्न बताए।

विशेष :- वेद मन्त्रों की जो आगे फोटोकॉपियाँ लगाई हैं, ये आर्यसमाज के आचार्यों तथा महर्षि दयानंद द्वारा अनुवादित हैं और सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा दिल्ली द्वारा प्रकाशित हैं।

जिनमें वर्णन है कि परमेश्वर स्वयं पृथ्वी पर सशरीर प्रकट होकर कवियों की तरह आचरण करता हुआ सत्य अध्यात्मिक ज्ञान सुनाता है। (प्रमाण ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सुक्त 86 मन्त्रा 26-27, ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 82 मन्त्र 1-2ए सुक्त 96 मन्त्र 16 से 20, ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 94 मन्त्र 1, ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 95 मन्त्र 2, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 20 मन्त्र 1, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 54 मन्त्र 3 में) इन मन्त्रों में कहा है कि परमात्मा सर्व भवनों अर्थात् लोकां के उपर के लोक में विराजमान है।

जब-जब पृथ्वी पर अज्ञान की वृद्धि होने से अधर्म बढ़ जाता है तो परमात्मा स्वयं सशरीर चलकर पृथ्वी पर प्रकट होकर यथार्थ अध्यात्म ज्ञान का प्रचार लोकोक्तियों, शब्दों, चौपाईयों, साखियों, कविताओं के माध्यम से कवियों जैसा आचरण करके घूम-फिरकर करता है। जिस कारण से एक प्रसिद्ध कवि की उपाधि भी प्राप्त करता है।

परमात्मा ने अपने मुख कमल से ज्ञान बोलकर सुनाया था। उसे सूक्ष्म वेद कहते हैं। उसी को ‘तत्त्व ज्ञान’ भी कहते हैं। तत्त्वज्ञान का प्रचार करने के कारण परमात्मा ‘‘तत्त्वदर्शी सन्त’’ भी कहलाने लगता है। उस तत्त्वदर्शी सन्त रूप में प्रकट परमात्मा ने संसार रुपी वृक्ष के सर्वांग

इस प्रकार बतायेः-

कबीर, अक्षर पुरुष एक वृक्ष है, क्षर पुरुष वाकि डार। तीनों देवा शाखा हैं, पात रुप संसार।।

भावार्थ : वृक्ष का जो हिस्सा पृथ्वी से बाहर दिखाई देता है, उसको तना कहते हैं। जैसे संसार रुपी वृक्ष का तना तो अक्षर पुरुष है। तने से मोटी डार निकलती है वह क्षर पुरुष जानो, डार से मानो तीन शाखाऐं निकलती हों, उनको तीनों देवता (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी तथा तमगुण शिव) हैं तथा इन शाखाओं पर टहनियों व पत्तों को संसार जानों। इस संसार रुपी वृक्ष के उपरोक्त भाग जो पृथ्वी से बाहर दिखाई देते हैं। मूल (जड़ें), जमीन के अन्दर हैं।

जिनसे वृक्ष के सर्वांगों का पोषण होता है। गीता अध्याय 15 श्लोक 16-17 में तीन पुरुष कहे हैं। श्लोक 16 में दो पुरुष कहे हैं ‘‘क्षर पुरुष तथा अक्षर पुरुष’’ दोनों की स्थिति ऊपर बता दी है।

गीता अध्याय 15 श्लोक 16 में भी कहा है कि क्षर पुरुष तथा अक्षर पुरुष दोनों नाशवान हैं। इनके अन्तर्गत जितने भी प्राणी हैं, वे भी नाशवान हैं। परन्तु आत्मा तो किसी की भी नहीं मरती। गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा है कि उत्तम पुरुष अर्थात् पुरुषोत्तम तो क्षर पुरुष और अक्षर पुरुष से भिन्न है जिसको परमात्मा कहा गया है। इसी प्रभु की जानकारी गीता अध्याय 8 श्लोक 3 में है जिसको ‘‘परम अक्षर ब्रह्म‘‘ कहा है। गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में इसी का वर्णन है।

यही प्रभु तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है। यह वास्तव में अविनाशी परमेश्वर है। मूल से ही वृक्ष की परवरिश होती है, इसलिए सबका धारण-पोषण करने वाला परम अक्षर ब्रह्म है। जैसे पूर्व में गीता अध्याय 15 श्लोक 1-4 में बताया है कि ऊपर को जड़ (मूल) वाला, नीचे को शाखा वाला संसार रुपी वृक्ष है। जड़ से ही वृक्ष का धारण-पोषण होता है।

इसलिए परम अक्षर ब्रह्म जो संसार रुपी वृक्ष की जड़ (मूल) है, यही सर्व पुरुषों (प्रभुओं) का पालनहार इनका विस्तार (रचना करने वाला = सृजनहार) है। यही कुल का मालिक है।

How to attain salvation?

In this prime time Saint Rampla Ji Maharaj is only one true complete guru who can explore the true paths for salvation. Rest the norms and values are useless and never provide benefits.  Human life is very rare, one shouldn’t spoil for gathering the dolls like vehicles and other assets.

Contributing this life for making prosperous is a kind of illusion enforced by Jyoti Niranjan Kaal with his three son (Rajogun brahma, SatoGun Vishnu and TammoGun Shiv) including this better half Aadi Maya Astangi (Durga/Prakriti/Maya). We should be determined towards complete god as directed by true guru Saint Rampalji Maharaj. To take Naam Upadesh please go to “Naam Diskha” menu from menu bar at top.

Miracle of Lord kabir sahib
Evaluation of disciples by Kabir Sahib
Secrets of Gita Ji (Hindi)
The true devotee: Story of Sandeepak

Don’t Miss This

Did Dhruv attained salvation?

soulofkabir

Purify your soul from true guru Saint Rampal Ji Maharaj to attain salvation

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *